Friday, August 21, 2009

यादें ...

यादों की तस्वीर है आँगन में मेरे
वो गम की रातें वो खुशियों के सवेरे।
हर एक की सूरत दिखती है ऐसे
आज कल में ही कभी मिले हो जैसे।
वो सारे पुराने गमो की परछाई
आती है कभी मिटने को तनहाई।
अपनों का साथ वो दोस्तों की वफ़ा
मिल जाए वो सब काश फ़िर से एक दफा।

Tuesday, June 23, 2009

माँ.....


This poem is for all staying away from ther family either for theit job or studies or may be for some other reason n missing them...
माँ...............
तेरी याद आई॥
जब सूरज ने अपनी पहली किरण दिखाई तो तेरी याद आई,
जब सुबह सुबह चिडिया चेह्चकायी तो तेरी याद आई,
देखा बच्चों को स्कूल जाते हुए तो तेरी याद आई,
आ रह थी गर्मागर्म चाय की खुशबू सामने वाले घर से,
तो इस सर्दी की सुबह तेरी बहुत याद आई,
उठा रही थी एक माँ बड़े प्यार से अपने बच्चे को,
हो रहा था वो लेट जाने को स्कूल,
तो तेरी बहुत याद आई....
उस एक पल तेरी बहुत याद आई।
तेरे हाथ का वो नाश्ता,
तेरे वो प्यार भरा स्पर्श।
भूल जाता हूँ मैं हर गम तेरे आँचल पाने क बाद,
माँ तेरी बहुत याद आई..

ये रिश्ता....

क्याहै ये रिश्ता और क्यूँ है ? क्या एक इंसान का आखिरी पड़ाव शादी करना ही होता है ????
क्या ये रिश्ता सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा अपना होता है?
क्यों इस एक रिश्ते के ज़िन्दगी में आने से बाकी सारे रिश्ते- दोस्ती के, भाई बहिन के, माँ बाप के, सब बदलने से लगते हैं।
क्यों ये एक रिशता आपके इतना हावी हो जाता है की आपको ख़ुद ही किसी और रिश्ते की जरूरत नही लगती। क्या ऐसा होना सही है??
क्यों हम अपने जीवनसाथी पे इतना हक़ रखने लगते हैं की हमको मंजूर नही हो पता अगर वो हमारे अलावा किसी और को भी एहमियत दे?
क्यों आख़िर क्यों?
कभी कभी जब अकेले होती हूँ तो सोचती हूँ वो भी क्या दिन थे..हम सब दोस्त एक दूसरे पे जान छिड़कते थे। एक दूसरे की खुशी में खुश और गम में दुखी होते थे। आज भी दुश्मन नही बने हैं हुम। पर आज वो दौर आ गया है की एक दूसरे क हाल जाने महिना हो जाता है। मिलने का मन तो बहुत करता है पर समय नही निकाल पते। apni ghar घ्राहस्ती में इतना लीं हो गए हैं की अपने सगों से अपने माँ बाप से बात करने क लिए भी सोचना पड़ता है..क्यों अपनों से इतना दूर होते जा रहे हैं हम॥
क्यों????
कभी लगता है अच्छा ही हुआ की हमें भी कोई मिल गया नही तो जब दोस्तों की ग्रहस्ती बस जाती तो हम अकेले रह जाते.अभी कोई है जो अपना है। कोई है जो सुख दुःख का साथी है।
पर फ़िर भी मनन दुखी होता है..क्या ऐसा नही हो सकता की ये रिशता आए ज़िन्दगी में पर हमें हमारे अपनों से जुदा न करे...क्या ऐसा हो सकता है???